
यौन उत्पीड़न की झूठी एफआईआर लिखवाना पड़ सकता है महंगा
यौन उत्पीड़न की झूठी एफआईआर लिखना और लिखवाना महंगा पड़ सकता है। गृह मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि झूठी एफआईआर लिखने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही लोगों को फंसाने के मकसद से झूठी एफआईआर लिखवाने वाले को भी नहीं छोड़ा जाना चाहिए। समिति ने इस संबंध में राज्य सरकारों को आगाह करने के अलावा गृह मंत्रालय से झूठी एफआईआर पर कार्रवाई के लिए कानूनी संशोधन पर विचार करने को कहा है। समिति ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों को गंभीरता से लेकर कार्रवाई के साथ ही साथ झूठे मामलों पर नकेल की जरूरत बताया है।
संसदीय समिति ने महिला उत्पीड़न के विरुद्ध एफआईआर न लिखे जाने की प्रवृत्ति पर भी चिंता जताई है। समिति ने कहा है कि यौन उत्पीड़न के मामलों को गंभीरता से लेने की जरूरत है। इस संबंध में पीड़ित महिला या उसके परिजनों द्वारा शिकायतो को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। समिति का कहना है कि सरकार को ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि एफआईआर लिखे जाने की प्रक्रिया आसान हो। किसी भी थाने में एफआईआर लिखवाना आसान होना चाहिए। अगर एफआईआर लिखने में पुलिसकर्मी या ड्यूटी ऑफिसर द्वारा देरी की जाती है तो इसके कारणों का भी उल्लेख रिकॉर्ड में होना चाहिए।
समयबद्ध तरीके से जांच करने की जिम्मेदारी
समिति ने कहा है कि गृह मंत्रालय को सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश में जीरो एफआईआर शुरू करने हेतु निर्देश देना चाहिए। सीसीटीएनएस के जरिये जीरो एफआईआर शुरू की जा सकती है। समिति ने यौन अपराध से जुड़े मामलों में सजा की दर कम होने का भी उल्लेख किया है। ऐसे मामलों में जांच समयबद्ध तरीके से पूरा करने और त्वरित कार्रवाई के लिए सिफारिश की गई है।